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नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

तरल नैनो यूरिया के कारोबारी उत्पादन करने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। गुजरात के भावनगर में केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया की मौजूदगी में गुजरात के भावगन में ड्रोन से नैनो यूरिया के छिडकाव का सफल परीक्षण किया गया।  जून में इसका उत्पादन शुरू हुआ और तब से अब तक हमने नैनो यूरिया की 50 लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन कर लिया है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया की प्रतिदिन एक लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन किया जा रहा है। इस दौरान मौजूद किसानों के मध्य मंत्री ने कहा कि उर्वरक और दवाओं के परंपरागत उपयोग को लेकर कई तरह की शंकाएं किसानों के मन में रहती हैं। छिड़काव करने वाले के स्वास्थ्य को इससे होने वाले संभावित नुकसान के बारे में भी चिंता व्यक्त की जाती है। ड्रोन से इसका छिड़काव इन सवालों और समस्याओं का समाधान कर देगा। ड्रोन से कम समय में अधिक से अधिक क्षेत्र में छिड़काव किया जा सकता है। इससे किसानों का समय बचेगा। छिड़काव की लागत कम होगी।

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उन्होंने नैनो टेक्नोलाजी की खूबी पर चर्चा करते हुए कहा कि इससे यूरिया आयात घटेगा। किसानों को और जमीन को अधिक यूरिया डालने से होन वाले नुकसान से किसान बचेंगे। जमीन की उपज क्षमता में भी लाभ होगा। संतुलित उर्वरक उपयोग से खाद्यान्न गुणवत्ता भी सुधरेगी। यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसका उपयोग अन्य जन कल्याणकारी कार्यों में किया जा सकेगा। इस दौरान इफको के प्रतिनिधियों ने किसानों की जिज्ञासा को शांत किया। उन्होंने किसानों को ड्रोन से किए जाने वाले छिडकाव को जीवन रक्षा के लिए बेहद कारगर बताया। इस अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष और इफको के उपाध्यक्ष दिलीप भाई संघानी भी उपस्थित थे।
FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किसानों की आमदनी को दोगुना करने का निरंतर प्रयास रहता है। इसी कड़ी में 2024 में उर्वरक और कृषि रसायन छिड़काव में ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन मिलेगा। एफएमसी इंडिया के निदेशक राजू कपूर – कृषि रसायन उद्योग ने वर्ष 2023 में सामने आई चुनौतियों का सामना करते  हुए सतर्क व सकारात्मक आशावाद के साथ 2024 में प्रवेश किया है। 2023 के दौरान कृषि क्षेत्र में जीवीए 1.8% प्रतिशत तक गिर गया। वहीं, कृषि रसायन उद्योग के अंदर प्रमुख चालक बरकरार रहे। इस वजह से इस क्षेत्र को खुद को रीबूट (रीस्टार्ट) करने की आवश्यकता है।

जीवीए से आप क्या समझते हैं ?

सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) किसी अर्थव्यवस्था (क्षेत्र, क्षेत्र या देश) में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समकुल मूल्य का माप है। जीवीए से यह भी पता चलता है, कि किस विशेष क्षेत्र, उद्योग अथवा क्षेत्र में कितनी पैदावार हुई है। 

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इस 2024 में फसल सुरक्षा उद्योग में वृद्धि की संभावना 

बतादें, कि वर्ष 2023 की द्वितीय छमाही में वैश्विक स्तर पर फसल सुरक्षा उद्योग पर डीस्टॉकिंग (भंडारण क्षमता को कम करना) का विशेष प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। 2024 के चलते यदि मौसम सही रहा, तो भारतीय फसल सुरक्षा उद्योग में वर्ष की तीसरी/चौथी तिमाही में ही उछाल आने की संभावना है। जो कि समग्र बाजार की गतिशीलता में सामान्य हालात की वापसी का संकेत है। वही, रबी 2023 के लिए बुआई का क्षेत्रफल काफी सीमा तक क्षेत्रीय फसलों के लिए बरकरार है। परंतु, बुआई में दलहन और तिलहन के क्षेत्रफल में गिरावट उद्योग के लिए नकारात्मक है।

एफएमसी इंडिया के उद्योग एवं सार्वजनिक मामले के निदेशक राजू कपूर का कहना है, कि चीन से कृषि रसायनों की ‘डंपिंग’ में नरमी की आशा करनी चाहिए। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण प्रगति उर्वरक एवं कृषि रसायन छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग में काफी वृद्धि है। सरकार समर्थित ‘ड्रोन दीदी’ योजना की शुरुआत से इसे बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। उर्वरक और कृषि रसायन उद्योग के मध्य शानदार समन्वय से ड्रोन को एक सेवा अवधारणा के तौर में स्थिर करने में सहायता मिलेगी, इसकी वजह से फसल सुरक्षा और पोषण उपयोग दक्षता व प्रभावकारिता में सुधार आऐगा।

खरपतवारों व कीटनाशकों के लिए नियंत्रण योजना

श्री कपूर ने कहा “हमें गेहूं की फसलों में फालारिस जैसे खरपतवारों और गुलाबी बॉलवॉर्म जैसे कीटनाशकों से झूझने के लिए नए अणुओं के अनावरण की भी आशा करनी चाहिए। नवीन अणुओं के विनियामक अनुमोदन के लिए लगने वाले वक्त को तर्कसंगत बनाने के नियामक निकाय केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की घोषणा से इसे बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।”

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बागवानी उत्पादन की लगातार बढ़ोतरी कवकनाशी की लगातार मांग के लिए सकारात्मक होगी। हालांकि, जेनेरिक उत्पादों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। परंतु, सहायक सरकारी योजनाओं के साथ उद्योग का दूरदर्शी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि उद्योग विकास मार्ग पर लौट आए। श्री कपूर ने कहा कि 2024 में कृषि उद्योग की संभावनाएं इसके नवाचार एवं रणनीतिक कार्यों की खूबियां हैं। यह क्षेत्र सशक्त खाद्य मांग एवं टिकाऊ कृषि प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से एक साल के विस्तार के लिए तैयार है।

किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा खेतों में फसलों को जल पोषित करने हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया है। इस ड्रोन से किसान भाई कम वक्त में दवा व उर्वरकों का छिड़काव कर पाएंगे। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया जाएगा। किसान ड्रोन तकनीक के माध्यम से कीटनाशक व उर्वरकों का छिड़काव फसलों पर कर पाएंगे। केवल 15 मिनट के समय के अंदर एक एकड़ भूमि पर खाद अथवा फिर कीटनाशक का छिड़काव कर सकेंगे। इस तकनीकी उपयोग से जल की खपत कम होने के साथ-साथ वक्त भी बचेगा। फसलों की पैदावार को अच्छा करने के लिए निरंतर केंद्र सरकार कदम उठा रही है। इसी कड़ी में बरकछा में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों की खेती को अत्यधिक सुगम करने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन निर्मित किया गया है।

समय की बर्बादी खत्म उत्पादन में होगी बढ़ोत्तरी

मिर्जापुर जनपद के बरकछा के बीएचयू में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से 10 लाख रुपये के खर्च से अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया गया है। ड्रोन तकनीक से केवल 15 मिनट में एक एकड़ भूमि पर खाद, कीटनाशक अथवा दवा का छिड़काव आसानी से कर सकते हैं। फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी करने के लिये केंद्र सरकार निरंतर नई तकनीक जारी कर रही है। अत्याधुनिक ड्रोन समस्त तरह की कृषि हेतु लाभकारी है।
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किसानों के खर्च में कमी आएगी

किसान ड्रोन तकनीक का उपयोग करके नैनो यूरिया (Nano Urea) का भी छिड़काव कर सकते हैं। इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होगा। कृषि विज्ञान केंद्र मुफ्त में किसानों को ड्रोन उपलब्ध कराएगा । इस ड्रोन के वजन की बात करें तो यह 14.5 किलो ग्राम का है। ड्रोन के नीचे एक बॉक्स बना रहता है। इस बॉक्स के अंदर कीटनाशक अथवा खाद रखा जा सकता है। कम जल खपत एवं कम खर्च में किसान खेतों में छिड़काव कर पाएंगे। इस तकनीक के इस्तेमाल से किसानों का खर्च भी काफी कम हो जाएगा।

ड्रोन से किया गया छिड़काव ज्यादा फायदेमंद होता है

कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ श्रीराम सिंह का कहना है, कि ड्रोन के माध्यम से किसान एक एकड़ भूमि में कीटनाशकों, वाटर सॉल्युबल उर्वरकों और पोषक तत्वों का फिलहाल कम समय के अंदर किसान छिड़काव कर पाएंगे। इसकी सहायता से उनके वक्त के साथ संसाधन भी बचेेंगे। ड्रोन तकनीक द्वारा ऊपर से छिड़काव किया जाता है, जो कि फसलों हेतु अत्यंत लाभकारी होता है। मैनुवल से अधिक ऊपर से छिड़काव लाभकारी होता है।

किसानों द्वारा नैनो यूरिया उपयोग किया जा सकता है

खेतों में छिड़काव हेतु किसान नैनो यूरिया (Nano Urea) का उपयोग कर सकते हैं। इफको द्वारा दानेदार खाद से इतर हटकर नैनो यूरिया तैयार किया है। एक बोतल नैनो यूरिया एक बोरी खाद के समरूप किसानों की फसलों की पैदावार में वृद्धि करने हेतु काम है। एक एकड़ भूमि के लिए पांच सौ एमएल की एक ही बोतल काफी है। नैनो यूरिया के 4 एमएल प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों में छिड़काव किया जा सकता है। ड्रोन तकनीक में इसी यूरिया का उपयोग कर सकते हैं। नैनो यूरिया पूर्णतय प्रदूषण से मुक्त है।
दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

किसानों के लिए तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय ने रिसर्च के बाद एक नया सॉल्यूशन विकसित किया है। इतना ही नहीं इस सॉल्यूशन से फल और सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने में मदद मिलेगी। तमिलनाडू के कोयम्बटूर में तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय जो कि अब सौ साल पुराना हो चुका है। उसके परिसर में नैनो विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग देश में खेती की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए नैनो सॉल्यूशन पर काम जारी है। बताया जा रहा है कि, इसमें खेती के काफी सारे इनपुट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमें उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार और कवक नासी जैसी चीजें शामिल हैं। हालांकि सिर्फ 20 से 30 फीसद ही फसलें इनका इस्तेमाल करती हैं। जिसका बाकी का बचा हुआ हिस्सा मिट्टी के अवशेषों के रूप में रह जाता है। जा फिर जमीन में मिल जाता है।

अनुसंधान के निदेशक ने की स्थापना

अनुसंधान के निदेशक केएस सुब्रमण्यन भारत के सबसे अग्रिणी लोगों में शामिल हैं। सुब्रमण्यन के पास नैनो प्रोद्योगिकी कृषि सहायता के सेक्टर में सालों का अनुभव है। साल 2017 में NABARD ने TNAU में नैनो साइंस और प्रौधोगिकी विभाग में बर्ड प्रोफेसर चेयर को स्थापित किया। साल 2017 से साल 2020 में करीब एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ सुब्रमण्यम को लगभग तीन सालों के लिए इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गयी। इसके आलवा TANU नव प्रदूषण को कम करने के अलावा, फसलों की अच्छी उपज और अच्छे उत्पादन के साथ साथ फलों और सब्जियों को लंबे समय तक तरो ताजा बनाने के लिए नैनी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रिसर्च और विकास किया। जानकारी के लिया बतादें कि, कृषि इनपुट की क्षमता में सुधार करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी सहायता करती है। इसके लिए उत्पादों का इस्तेमाल प्रभावी लागत के साथ सटीक और सही मात्रा और लेवल तक किया जा सकता है।

नैनो उत्पाद सरकारी खजाने में लाएगा बचत

देश में लगभग एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कीमत के उर्वरकों का आयात किया जाता है। साथ ही, नैनो उत्पादन सरकार खजाने में काफी बचत भी करने में मददगार हो सकता है। सुब्रमण्नयम के मुताबिक यूरिया की 5 सौ मिलीलीटर की बोतल युरिया के 50 किलो बैग के बराबर होती है। वहीं, 5 सौ एमएल यूरिया की कीमत लगभग दो सौ से ढ़ाई सौ के बीच में है। जो कि एक एकड़ जमीन के लिए काफी होती है। ये भी पढ़ें: नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो सॉल्यूशन से होगी फलों और सब्जियों की सुरक्षा

नैनो उत्पाद का इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ मिल सकते हैं। देश में हर साल करीब 330 मिलियन टन फलों और सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। जो कि पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। लेकिन हर तीन में से एक फल यानि की लगभग 35 फीसद फल और सब्जी खराब हो जाते हैं। TNAU परियोजना के तहत फलों को संरक्षित करने और उन्हें लंबे समय तक ताजा बनाए रखने और कचरे को कम करने के लिए नैनो उत्पादों की एक सीरीज तैयार की गयी है। हालांकि, तमिलनाडू में आम और केले की खेती के लिए इस प्रयोग को किया जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ एक ही सोच है, और वो ये है कि, नुकसान का 10 फीसद कम किया जा सकता है। इससे देश के हिस्से बड़ी बचत आ सकती है।

किसानों को हो रहा फायदा

5 हजार से ज्यादा किसानों ने आम और केले की खेती के लिए इस फार्मुलेशन का इस्तेमाल किया है। इससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ है। यह किसान कृष्णागिरी, थेनी, डिंडीगुल और कन्याकुमारी जिले के थे। वहीं 80 फीसद किसानों के अनुसार उपज में काफी हद तक बीमारी में कमी हुई है और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।

बीजों के लिए आ गया नैनो समाधान

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग प्रसंस्करण की लैब में बीजों की परत चढ़ाई जाती है। जिसमें कपास, मूंग, धान और भिंडी के बीजों में सूक्ष्म नैनो फाइबर लगाया जाता है। जिसमें सभी तरह के पोषण, कीटों से सुरक्षण के साथ साथ विकास भी शामिल है। इसके लिए पहले से ही बीजों को तैयार कर लिया जाता है। जो किसानों के लिए मददगार होते हैं। जिसके बाद उनके उपचार से लेकर कीटनाशकों से जुड़ी टेंशन नहीं लेनी पड़ती।

TNAU में विकसित उत्पादों में से एक नैनो यूरिया

नैनो यूरिया का इस्तेमाल तमिलनाडु के बवानी सागर एरिया में करीब दस एकड़ चावल और मक्के पर किया जा चुका है। जोकि काफी सफल रहता है। साथ ही इसकी उपज में 10 से 15 फीसद तक बढ़ोतरी हुई है। जिसे देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के 11 हजार जगहों पर परीक्षण किया। जिसमें से कुल 650 कृषि विज्ञान केन्द्रों के जरिये नैनो यूरिया को बांटा गया। साल 2022 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के पहले नैनो यूरिया लिक्विड सयंत्र का उद्घाटन किया था। जो उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की इनकम को बढ़ाने में भी मददगार साबित हुआ था। इसे साइंटिफिक रूप से मान्य और जैव सुरक्षा परीक्षण किया गया। जहां साल 2021 में उर्वरकों को कंट्रोल आदेश के द्वारा देश में पहले नैनो उर्वरक की अधिसूचना में मदद मिली।

नैनो तकनीक को किया सूचीबद्ध

किसानों के लिए सबसे चैलेंजिंग काम फसलों की बिमारियों का पता लगाने के साथ-साथ मिट्टी में नाइट्रोजन और नमी का लेवल नापने और इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन किसी तरह का हानिकारक है या नहीं। किसानों द्वारा इन सब चीजों का पता नैनो तकनीक के माध्यम से किया जा रहा है। हाल ही में नैनो उपकरणों को किसानों से जोड़ने का काम किया जा रहा है। इससे किसानों को उनकी फसलों में अगर कोई कमी मिलती है, तो उन्हें मैसेज के जरिये कांटेक्ट किया जा सकता है।

चुनौतियों को समझना भी मुश्किल

नैनो तकनीक में कई तरह की सम्भावनाएं हैं। लेकिन इसका सही इस्तेमाल करने के लिए काफी चुनौतियों को पार करना होगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो, इसके विकास को जारी रखने के लिए आर्थिक चुनौती में मदद की थी। इसके अलावा प्रयोगकर्ता और किसानों से लेकर नीति निर्माताओं और लोगों के बीच प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, इससे जुड़ी जागरूकता होनी भी जरूरी है। ताकि अनुसंधान और विकास को फायदा मिल सके।
नैनो यूरिया उर्वरक क्या है और यह किस तरह से काम करता है ?

नैनो यूरिया उर्वरक क्या है और यह किस तरह से काम करता है ?

नैनो यूरिया, जिसे नैनोस्केल यूरिया या नैनोटेक्नोलॉजी-आधारित यूरिया के रूप में भी जाना जाता है, यूरिया उर्वरक का एक अभिनव रूप है जिसने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। इसमें पारंपरिक यूरिया (दानेदार यूरिया ) की संरचना और गुणों को संशोधित करने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप यूरिया की कुशलता में वृद्धि हुई है, liquid नैनो यूरिया के इस्तेमाल से पारंपरिक यूरिया का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव कम होगा है और फसल उत्पादकता में सुधार हुआ है। हमारे इस लेख में आप liquid नैनो यूरिया के गुणों और इसके इस्तेमाल से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे। 

नैनो यूरिया क्या है?

नैनो यूरिया, यूरिया का ही liquid रूप है , यूरिया एक रासायनिक नाइट्रोजन fertilizer है जिसका रंग सफ़ेद होता है, यह कृत्रिम रूप से पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है जो पोधो के लिए एक प्रमुख पोषक तत्व है, नैनो यूरिया की 500 ml की बोतल में 40,000 मिलीग्राम प्रति लीटर  nitrogen होती है , नैनो यूरिया की प्रभावशीलता 85 - 90 % तक हो सकती  है जिससे की पौधे को nitrogen की उपलब्ध्ता आसानी से हो जाती है ,नैनो यूरिया को सीधे पौधे की पत्तियों  पर छिड़का जाता है जिसे पौधे द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है ,नैनो यूरिया को  IFFCO – Nano Biotechnology Research Center कलोल गुजरात द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। 

नैनो यूरिया से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड ने अगस्त 2021 में देश का पहला लिक्विड नैनो यूरिया संयंत्र चालू किया था।  
  • लिक्विड नैनो यूरिया का सीधा फसलों की पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है , जिससे की पौधे द्वारा आसानी से सोख लिया जाता है। 
  • नैनो यूरिया की शेल्फ लाइफ एक साल होती है। 
  • यह किसानों के लिए सस्ता है और किसानों की आय बढ़ाने में भी लाभकारी है। 
  • IFFCO कंपनी के अनुसार नैनो यूरिया की एक बोतल का प्रभाव, यूरिया की एक बोरी के बराबर होती है , मतलब की 500 ml नैनो यूरिया की बोतल 45 किलोग्राम दानेदार यूरिया के बराबर है।     

नैनो यूरिया से होने वाले लाभ

नैनो यूरिया पौधों की जड़ों द्वारा बेहतर संपर्क और अवशोषण को बढ़ावा देता है। इससे पौधे की पोषक तत्व ग्रहण क्षमता में सुधार होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फसलों द्वारा अधिक नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है और बर्बादी कम होती है।

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नैनो यूरिया  फसलों को नाइट्रोजन की निरंतर आपूर्ति प्रदान करता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और उपज में सुधार होता है। नैनो यूरिया के नियंत्रित उपयोग और बढ़े हुए पोषक तत्व अवशोषण से पर्यावरण में नाइट्रोजन के नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। नैनो यूरिया के इस्तेमाल से जल प्रदूषण कम होता है क्योंकि दानेदार यूरिया पानी के साथ भूमि के निचे चला जाता है जिससे की भूमिगत जल प्रदूषण होता है        नैनो यूरिया के इस्तेमाल से नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है, जो जलवायु परिवर्तन में एक शक्तिशाली योगदानकर्ता है।   नैनो यूरिया के इस्तेमाल से किसानों को उच्च फसल उपज प्राप्त होती है। इससे न केवल लागत बचती है बल्कि यूरिया की कुल मांग भी कम हो जाती है, जिससे अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों में योगदान मिलता है।  

पारंपरिक यूरिया (दानेदार यूरिया) में क्या कमियाँ है   

यूरिया दुनिया भर में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले उर्वरकों में से एक है। यह पौधों को आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन प्रदान करता है, जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि, पारंपरिक यूरिया में कुछ कमियाँ हैं जिन्हें नैनो यूरिया का इस्तेमाल करके दूर किया जा सकता है। 

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जब पारंपरिक यूरिया को मिट्टी में डाला जाता है, तो यह विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं से गुजरती है जिससे वाष्पीकरण, निक्षालन और विनाइट्रीकरण के माध्यम से नुकसान होता है। ये नुकसान न केवल उर्वरक की प्रभावशीलता को कम करते हैं बल्कि वायु और जल प्रदूषण जैसे पर्यावरण प्रदूषण में भी योगदान करते हैं। दानेदार यूरिया फसलों के लिए 30 -40 % ही प्रभावी है जबकि नैनो यूरिया फसलों के लिए 85 - 90 प्रतिशत तक प्रभावी है।   संक्षेप में, नैनो यूरिया कृषि उर्वरकों के क्षेत्र में एक आशाजनक प्रगति की किरण है। इसके नैनोस्केल गुण बेहतर पोषक तत्व ग्रहण, नियंत्रित रिलीज, कम पर्यावरणीय प्रभाव और कुशल संसाधन उपयोग प्रदान करते हैं। जैसे-जैसे इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास जारी है, नैनो यूरिया में टिकाऊ कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है, जो उर्वरक उपयोग को कम करते हुए फसल उत्पादकता में वृद्धि में योगदान देता है।
जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

आजकल हर तरह की खेती में उत्पादन बढ़ाने के लिए केमिकल और अलग अलग तरह के उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। कृषि से बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है। इसी समस्या को कम करने के लिए लंबे समय से उपाय ढूंढे जा रहे हैं और इसके लिए नैनो तकनीक काफी बेहतरीन साबित हो रही है। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोओपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) बहुत समय से लिक्विड फॉर्म में उर्वरक बनती रही है और अब उसी ने नैनो यूरिया लॉन्च किया था। जिसे किसानों ने खूब पंसद किया। पहले किसानों को भारी-भारी बोरी उर्वरकों की उठानी पड़ती थी। लेकिन अब ये काम बसह 500 मिली की बोतल का इस्तेमाल कर रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये उर्वरक लिक्विड फॉर्म में है और इसका छिड़काव बेहद आसानी से पानी के साथ किया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में नैनो यूरिया फर्टिलाइजर से कृषि की उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा में काफी मदद मिली है।

 

नैनो डीएपी फर्टिलाइजर का ट्रायल (Trial of Nano DAP Fertilizer)

इस पहल में अब केंद्र सरकार भी हिस्सेदार हो गई है और सरकार की तरफ से नैनो डीएपी लॉन्च करने की घोषणा कर दी है। सरकार ने नैनो पोटाश, नैनो जिंक और नैनो कॉपर उर्वरकों पर भी काम करने की बात कही है। 5 फसलों चना, मटर, मसूर, गेहूं, सरसों पर नैनो डीएपी का ट्रायल कर रहे हैं।

 

क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर? (What is Nano DAP Fertilizer?)

नैनो यूरिया की तरह ही नैनो डीएपी 'डाय-अमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate)' का लिक्विड वर्जन है। अब से पहले ये फ़र्टिलाइज़र सूखे फॉर्म में मिलता था और इसे पाउडर-गोलियों के तौर पर पीले रंग की बोरी में उपलब्ध करवाया जाता है। इस उर्वरक से मिट्टी प्रदूषण के आसार रहते हैं। 

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कई बार किसान फसल की आवश्यकता से अधिक डीएपी उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। जिससे बाद में मिट्टी के उपजाऊपन पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह एक फॉस्फेटिक यानी रसायनिक खाद है, जो पौधों में पोषण और उनके अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूरा करती है। अगर इसमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा की बात की जाए तो इस उर्वरक में 18% नाइट्रोजन और 46% फॉस्फोरस होता है। इससे पौधों की जड़ों का विकास काफी अच्छी तरह से होता है। यह उर्वरक फसल की उत्पादकता को बढ़ाने में काफी बेहतरीन है और किसानों की परेशानी को कम करता है।

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

भारत के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री तटों में उगने वाले लाल-भूरे रंग के शैवाल भी फसल की गुणवत्ता के साथ पैदावार में बढ़ोत्तरी हेतु भी काफी सहायक साबित होते हैं। इफको (IFFCO) द्वारा इस समुद्री शैवाल के प्रयोग से जैव उर्वरक भी निर्मित किया जाता है। कृषि क्षेत्र को और ज्यादा सुविधाजनक बनाने हेतु केंद्र व राज्य सरकारें एवं वैज्ञानिक निरंतर नवीन प्रयोग करने में प्रयासरत रहते हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ मशीनों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इनका उपयोग करने के लिए कृषकों को अधिक खर्च वहन ना करना पड़े। इस वजह से बहुत सारी योजनाएं भी लागू की गयी हैं और आज भी बनाई जा रही हैं। इन समस्त प्रयासों का एकमात्र लक्ष्य फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार में बेहतरीन करना है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए फसलीय पैदावार अच्छी दिलाने में जैविक खाद व उर्वरक स्थायी साधन की भूमिका निभा रहे हैं। जैविक खाद तैयार करना कोई कठिन कार्य नहीं है। किसान अपनी जरूरत के हिसाब से अपने गांव में ही जैविक खाद निर्मित कर सकते हैं। परंतु, मृदा का स्वास्थ्य एवं फसल के समुचित विकास हेतु कुछ पोषक तत्वों की भी आवश्यकता पड़ती है, जिसको उर्वरकों के उपयोग से पूर्ण किया जाता है। वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या यह है, कि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मृदा की शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए ही जैव उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ाने और उपयोग में लाने की राय दी जाती है। समुद्री शैवाल जैव उर्वरक का अच्छा खासा स्त्रोत माना जाता है। जी हां, भारत में नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) को लॉन्च करने वाली कंपनी इफको ने समुद्री शैवाल के प्रयोग से बेहतरीन जैव उर्वरक (Bio Fertilizer) निर्मित किया है। जो कि फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार को अच्छा करने में काफी सहायक माना जा रहा है।

इफको (IFFCO) 'सागरिका' को किस तरह से तैयार करता है

देश के दक्षिण-पूर्वी तटों से सटे समुद्र में उत्पन्न होने वाले लाल-भूरे रंग के शैवालों के माध्यम से इफको ने 'सागरिका' उत्पाद निर्मित किया है। इसकी सहायता से पौधों की उन्नति व विकास के साथ-साथ फसलीय उत्पादन की बढ़ोत्तरी में काफी सहायता प्राप्त होती है। इफको वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक, इफको के सागरिका उत्पाद में 28% कार्बोहाइड्रेट, प्राकृतिक हार्मोन, समुद्री शैवाल, प्रोटीन सहित विटामिन जैसे कई सारे पोषक तत्व उपलब्ध हैं। 

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'सागरिका' से क्या क्या लाभ होते हैं

इफको की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, समुद्री शैवाल से निर्मित सागरिका का विशेष ध्यान फसल की गुणवत्ता में बेहतरी लाना है। इसकी सहायता से फल एवं फूल का आकार बढ़ाने, प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल का संरक्षण, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने एवं पौधों की उन्नति व विकास हेतु आंतरिक क्रियाओं को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है। किसान इसका जरूरत के हिसाब से फल, फूल, सब्जियों, अनाज, दलहन, तिलहन की फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं।

सागरिका जैविक खेती हेतु काफी लाभदायक होता है

बहुत सारे किसान वर्षों से रसायनिक कृषि करते आ रहे हैं। इसलिए वह एकदम से ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming)की दिशा में बढ़ने से घबराते हैं। क्योंकि किसानों को फसलीय उत्पादन में घटोत्तरी का काफी भय रहता है। इस प्रकार की स्थिति में इफको सागरिका किसानों के लिए काफी हद तक सहायक भूमिका निभा सकता है। यह एक रसायन रहित उर्वरक व पोषक उत्पाद है, जो कि फसल को बिना नुकसान पहुंचाए उत्पादन को बढ़ाने में कारगर साबित होता है। किसान हर प्रकार की फसल पर इफको सागरिका का दो बार छिड़काव कर सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 30 दिन के अंतर्गत सागरिका का छिड़काव करने से बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं। यह तकरीबन 500 से 600 रुपये प्रति लीटर के भाव पर विक्रय की जाती है। किसान एक लीटर सागरिका का पानी में मिश्रण कर एक एकड़ फसल पर छिड़काव किया जा सकता है।